उत्तराखंड की बेटी सृष्टि लखेड़ा की फिल्म ‘एक था गांव’ को बेस्ट नॉन फीचर फिल्म का अवॉर्ड मिला है।
सृष्टि ने इस फिल्म का प्रोडक्शन और निर्देशन किया है। मंगलवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सृष्टि को पुरस्कार से नवाजा।
उन्होंने कहा कि 'मुझे खुशी है कि महिला फिल्म निर्देशक सृष्टि लखेरा ने ‘एक था गांव’ नामक अपनी पुरस्कृत फिल्म में एक 80 साल की वृद्ध महिला की संघर्ष करने की क्षमता का चित्रण किया है। महिला चरित्रों के सहानुभूतिपूर्ण और कलात्मक चित्रण से समाज में महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता और सम्मान में वृद्धि होगी। री
टिहरी जिले के कीर्तिनगर ब्लॉक के सेमला गांव निवासी सृष्टि लखेड़ा (35) की फिल्म ‘एक था गांव’ इससे पहले मुंबई एकेडमी ऑफ मूविंग इमेज (मामी) फिल्म महोत्सव के इंडिया गोल्ड श्रेणी में जगह बना चुकी है। गढ़वाली और हिंदी भाषा में बनी इस फिल्म में घोस्ट विलेज (पलायन से खाली हो चुके गांव) की कहानी है। सृष्टि का परिवार ऋषिकेश में रहता है। सृष्टि के पिता बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. केएन लखेरा ने बताया, सृष्टि करीब 13 साल से फिल्म लाइन के क्षेत्र में कार्य कर रही हैं।हर वर्ष मौत बांटती आपदा, दरकते मकान और खिसकती जमीन। इन पीड़ाओं से भी बड़ी एक पीड़ा है पलायन, जिससे पहाड़ वर्षों से जूझ रहा है। सैकड़ों गांव पलायन की चपेट में हैं। इन गांवों में घर साल दर साल खाली हो रहे हैं। युवा पीढ़ी जड़ों से कटती जा रही है। ...और पीछे छूट जा रहे हैं बुजुर्ग व उनके जीवन का एकांत। इसी एकांत की व्यथा को बयां करती है सृष्टि की फिल्म ‘एक था गांव’। सृष्टि को अपना गांव हमेशा याद रहा। इसलिए महानगरीय आभा को छोड़कर सृष्टि ने अपने मूल गांव सेमला, यहां के जीवन, पलायन, बुजुर्गों और युवाओं की कहानी को फिल्मी पर्दे पर उतारने का मन बनाया। इसके लिए सृष्टि ने लंबा समय गांव में गुजारा।
अपनी फिल्म के किरदारों 80 वर्षीय लीला देवी, 19 वर्षीय गोलू और दीनू लोहार की जीवनशैली का गहराई से अध्ययन किया। सृष्टि की लगन ने 61 मिनट की एक ऐसी फिल्म का निर्माण किया, जिसने भारत ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कई अवार्ड अपने नाम किए हैं।